essay on independence day in hindi 200 words
स्वतंत्रता दिवस का वर्णन
निगोड़ी फूट और पारस्परिक की ईर्ष्या-द्वेष के कारण कई शताब्दियों तक हम पराधीनता की यंत्रणा ही नहीं सहते रहे, वरना स्वतंत्रता का मूल्य ही भूल गए थे। पराधीनता हमें तनिक भी नहीं अखरती थी। किंतु विदेशी शासकों की मनमानी अत्याचारों ने तथा अपने प्राचीन गौरव ने हमें जगाने पर विवश किया।सर्वप्रथम 1857 में स्वतंत्रता की चिंगारी कुछ देश-दीवानों के हृदय में चमक उठी। उस समय यदि सारे देशवासी उन देश भक्तों का साथ देते तो संभवत: आज से 115 वर्ष पूर्व हम स्वतंत्र हो गए होते और इन 115 वर्षों में देश उन्नति के शिखर पर पहुंचा होता। परंतु अभी हमारे दुर्दिन समाप्त नहीं हुई थे, फलत: शासकों ने अपने दमनचक्रर से हमारी प्रयत्न विफल कर दिए। यद्यपि प्रकट रूप से आग बुझी मालूूम होती थी, किंतु पूर्णतया बुझी नहीं थी। समय पाकर वह फिर संभाली और स्वतंत्रता संघर्ष धीरे-धीरेेे जोर पड़ने लगा। कूटनीतिज्ञ शासकों नेे झूठे सच्चे वादे करकेे कई बार हमेंं सब्जबाग दिखाएं, समय-समय पर दमनचक्र भी चलाया, किंतु स्वतंत्रता की आग ठंडी नहीं हुई। इस यज्ञ में अनेक वीरों ने हंसते हंसते प्राणों की आहुति दी, जेलों की कठोर यातनाएं सही, फांसी के तख्तेे को चूमा, मातृभूमि से निर्वासित हुए, किंतु हिम्मत ना हारी।15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ। किंतु जाते-जाते अपनी कूटनीति से देश के दो खंड कर गए। हमने स्वतंत्रता के स्वागत के लिए हृदय पर पत्थर रखकर सब कुछ सह लिया। पहली बार 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता दिवस बड़ी धूमधाम से मनाया गया। राजधानी मेंं लालकिले पर तिरंगा लहराया गया। चारोंं ओर जनता का अपार समुंद्र उमड़ पड़ा था। 'जय-हिंद' के नारे से धरती और आकाश गुजायमान हो रहे थे। हमारे प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्रता संग्रााम के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। विभाजन की खूनी होली में मारे गए लोगों केे संबंधियों के प्रति सहानुभूति प्रकट की और स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ-साथ हमारेे कंधो पर जो कर्तव्यभार आ पड़ा था, उनके प्रति हमें जागरुक किया तब से लेकर हम प्रतिवर्ष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं। दिल्ली के अतिरिक्त अन्य प्रांतों, नगरों वा विदेशोंं से भी हजारोंं की संख्या मेंं लोग वहांं पहुंचते हैंं और इस समारोह में भाग लेते हैं। तिरंगे झंडे का गीत गाया जाताा है, सभी प्रकार की सेनाओं की परेड दिखाई जाती है। प्रधानमंत्री तथा अन्य मंत्रियोंं के समारोह स्थल पर पहुंचने के पश्चात तिरंगे को 31 तोपों की सलामी दी जाती है। प्रधानमंत्री अपने भाषण से स्वतंत्रता प्राप्ति के इतिहास को दोहराते हैं और अपने सुनहरेे सपनों केे भावी भारत के प्रगति के कार्यक्ररम को जनता के सामने रखतेेेे हुए कर्तव्य पालन की अपील करते हैं। भारत के अन्य छोटे-बड़े सभी नगरों में भी अपनी शक्ति के अनुसार स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है, भवन और सड़के सजाई जाती हैं, झंडे लहराए जाते हैं, जुलूस निकाले जाते हैं, सभाएं होती हैं, देेश भक्ति और देश प्रेम केेेे गीत गाए जाते हैं, भाषण होते हैं और जनता को देश हित केे कर्तव्य के प्रति जागरूक किया जाता है। स्कूल के विद्यार्थी भी इन में भाग लेेते है।
निगोड़ी फूट और पारस्परिक की ईर्ष्या-द्वेष के कारण कई शताब्दियों तक हम पराधीनता की यंत्रणा ही नहीं सहते रहे, वरना स्वतंत्रता का मूल्य ही भूल गए थे। पराधीनता हमें तनिक भी नहीं अखरती थी। किंतु विदेशी शासकों की मनमानी अत्याचारों ने तथा अपने प्राचीन गौरव ने हमें जगाने पर विवश किया।सर्वप्रथम 1857 में स्वतंत्रता की चिंगारी कुछ देश-दीवानों के हृदय में चमक उठी। उस समय यदि सारे देशवासी उन देश भक्तों का साथ देते तो संभवत: आज से 115 वर्ष पूर्व हम स्वतंत्र हो गए होते और इन 115 वर्षों में देश उन्नति के शिखर पर पहुंचा होता। परंतु अभी हमारे दुर्दिन समाप्त नहीं हुई थे, फलत: शासकों ने अपने दमनचक्रर से हमारी प्रयत्न विफल कर दिए। यद्यपि प्रकट रूप से आग बुझी मालूूम होती थी, किंतु पूर्णतया बुझी नहीं थी। समय पाकर वह फिर संभाली और स्वतंत्रता संघर्ष धीरे-धीरेेे जोर पड़ने लगा। कूटनीतिज्ञ शासकों नेे झूठे सच्चे वादे करकेे कई बार हमेंं सब्जबाग दिखाएं, समय-समय पर दमनचक्र भी चलाया, किंतु स्वतंत्रता की आग ठंडी नहीं हुई। इस यज्ञ में अनेक वीरों ने हंसते हंसते प्राणों की आहुति दी, जेलों की कठोर यातनाएं सही, फांसी के तख्तेे को चूमा, मातृभूमि से निर्वासित हुए, किंतु हिम्मत ना हारी।15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ। किंतु जाते-जाते अपनी कूटनीति से देश के दो खंड कर गए। हमने स्वतंत्रता के स्वागत के लिए हृदय पर पत्थर रखकर सब कुछ सह लिया। पहली बार 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता दिवस बड़ी धूमधाम से मनाया गया। राजधानी मेंं लालकिले पर तिरंगा लहराया गया। चारोंं ओर जनता का अपार समुंद्र उमड़ पड़ा था। 'जय-हिंद' के नारे से धरती और आकाश गुजायमान हो रहे थे। हमारे प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्रता संग्रााम के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। विभाजन की खूनी होली में मारे गए लोगों केे संबंधियों के प्रति सहानुभूति प्रकट की और स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ-साथ हमारेे कंधो पर जो कर्तव्यभार आ पड़ा था, उनके प्रति हमें जागरुक किया तब से लेकर हम प्रतिवर्ष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं। दिल्ली के अतिरिक्त अन्य प्रांतों, नगरों वा विदेशोंं से भी हजारोंं की संख्या मेंं लोग वहांं पहुंचते हैंं और इस समारोह में भाग लेते हैं। तिरंगे झंडे का गीत गाया जाताा है, सभी प्रकार की सेनाओं की परेड दिखाई जाती है। प्रधानमंत्री तथा अन्य मंत्रियोंं के समारोह स्थल पर पहुंचने के पश्चात तिरंगे को 31 तोपों की सलामी दी जाती है। प्रधानमंत्री अपने भाषण से स्वतंत्रता प्राप्ति के इतिहास को दोहराते हैं और अपने सुनहरेे सपनों केे भावी भारत के प्रगति के कार्यक्ररम को जनता के सामने रखतेेेे हुए कर्तव्य पालन की अपील करते हैं। भारत के अन्य छोटे-बड़े सभी नगरों में भी अपनी शक्ति के अनुसार स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है, भवन और सड़के सजाई जाती हैं, झंडे लहराए जाते हैं, जुलूस निकाले जाते हैं, सभाएं होती हैं, देेश भक्ति और देश प्रेम केेेे गीत गाए जाते हैं, भाषण होते हैं और जनता को देश हित केे कर्तव्य के प्रति जागरूक किया जाता है। स्कूल के विद्यार्थी भी इन में भाग लेेते है।